Friday 20 January 2012

UNTITLED

आज.........

रग़ों का ख़ून ठण्डा है
सांसें कम गर्म सी
जिस्म बेदम ढो रहा हूं
रूह जैसे जम गयी।

जोश बिदाई ले रहा
जुनूं बाकी न रहा
हारने का आदी हूं
कहने को कुछ न रहा।

ज़िन्दगी है घिसट रही
मौत मुझपर हंस रही
जीने की हर आरज़ू भी
बद्दुआएं दे रही।

दूसरों को क्या कहे
ख़ुद में ग़ैरत न रही
ताकते हैं ज़िल्लतों को
तोहमते जो दे रही।

ज़ुल्मतों की इंतहा है
चेहरा अब खिलता नहीं
मायूसी से दोस्ती है
रौनकों को अलविदा है।

श़ख़्सियत मुरझा चुकी है
हिम्मत बंजर हो चुकी
उम्मीदों की दख़लअंदाज़ी
ज़मींदोज़ हो चुकी।