Monday 13 September 2010

गांधीजी बंटवारे के ख़िलाफ़ थे - होमाई व्यारावाला


                        होमाई व्यारावाला द्वारा खींचा गया छायाचित्र

30 अगस्त 2010- सैय्यद शहाब अलीः जी हां.. गांधीजी बंटवारे के खिलाफ थे और इस फैसले से दुखी भी थे’-यह वक्तव्य था भारत की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट होमाई व्यारावाला का। हाल ही में उपराष्ट्रपति द्वारा लाईफ टाईम अचीवमेंट अवार्ड से नवाज़ी गयीं 97 वर्षीया होमाई ये कहते हुऐ भावुक हो गयीं। सोमवार, 30 अगस्त 2010 को जामिया मिल्लिया इस्लामिया स्थित एम.एफ. हुसैन आर्ट गैलरी में आयोजित फोटो प्रदर्शिनी में होमाई व्यारावाला ने कहा कि बंटवारे के समय सत्ता हथियाने की जल्दी ने देश का नुकसान किया और गांधीजी भी बंटवारे से खुश नहीं थे। बंटवारे के लिए हामी भरने वाले कांग्रेस कमेटी के एक सज्जन नेता का कहना था कि जब जिस्म का एक हिस्सा नासूर से ग्रस्त हो जाए तो उसे काट फेंकना ज़ऱूरी हो जाता है। यहां काबिले ग़ौर बात है कि वो नासूर दूर होकर और भी दुखदायी होता नज़र आता है। होमाई व्यारावाला के एक फोटोग्राफ में ‘वो दिन’ भी कैद है जिस दिन देश की तकदीर का फैसला कांग्रेस कमेटी की बैठक में इतनी जल्दबाज़ी में लिया गया था जितनी जल्दी शायद आज के समय में भूकम्प पीड़ितो या बाढ़ पीड़ितो की सहायता भी नहीं की जाती है। ये देश का दुर्भाग्य ही है कि निविणतम अन्धकार में डूबे बूढ़े भारत को शताब्दियों की दासता से मुक्ति दिलाने में जिस व्यक्ति ने सबसे भिन्न और अतुल्य योगदान दिया, उसी व्यक्ति को इतने अहम निर्णय के समय गौण स्थान मिला और शायद उसे मजबूर होकर अपना निर्णय देना पड़ा। सत्ता हथियाने के लालच ने सबकी आंखो पर ऐसे परदे डाले कि वे अपने चन्द सालों की भूख की ख़ातिर सदियों का दुख देश और देशवासियों की छाती पर रख गऐ। यकीनन ये बात भी सच है कि अगर ऐसा न हुआ होता तो इस बात की ज़िम्मेवारी कौन लेगा कि सबकुछ ठीक हो सकता था। लेकिन इतने बड़े फैसले के दिन जब लाखों लोग अपनी सांसे थामे कार्यालय के बाहर बेसब्री से इकट्ठा थे तो कम लोगो की मौजूदगी में फैसला क्यूं लिया गया। बंटवारे के विपक्ष में बोलने वालो को बैठा दिया गया और पक्ष में बोलने वालों को खूब मौका दिया गया। इस एक फैसले के अल्पकालिक परिणामों ने हज़ारों-लाखों को बेघर और न जाने कितनों को अपने अपनों को खोना पड़ा जिसकी ज़िम्मेदारी परोक्ष रूप से यहां डाली जा सकती है। उस दिन जर्नलिस्ट्स को अन्दर जाने के लिए केवल चन्द मिनटों का समय दिया गया था। जिस दौरान होमाई व्यारावाला ने वह छायाचित्र खींचा जो अत्यंत कॉंटरोवर्शल रहा है।

(होमाई जी का उस समय के कनॉट प्लेस का चित्र)
 यह चित्र युवा फोटो जर्नलिस्ट्स के लिए प्रेरणा का स्रोत है और इसे खींचने वाली उस समय की एकमात्र महिला फोटो जर्नलिस्ट चलती- फिरती फोटोग्राफी स्कूल हैं। होमाई ने इस अवसर पर भावी फोटो जर्नलिस्ट्स के सामने अपने समय की फोटोग्राफी सम्बन्धित व्यवहारिक कठिनाईयों और तकनीकी कमियों को भी उजागर किया। जैसे उस समय का सबसे हल्का कैमरा इतना बड़ा था जितना कि आज के समय में सीपीयू का आकार है। जिसे कन्धे पर लटकाकर घूमते हुए होमाई के चित्र अदभुत हैं। हर एक क्लिक के बाद कैमरे के ऊपर की ओर लगे बल्ब को बदलना पड़ता था। इसी तरह इस अवसर पर उनके कई छायाचित्रों को छात्रों के समक्ष प्रोजेक्टर द्वारा प्रस्तुत किया गया। जिनमें कहीं उस समय के कनॉट प्लेस की तस्वीर हमें उस कनॉट प्लेस को दिखाती है जिसे देखकर उस वक्त से जलन महसूस होती है। तो कहीं जवाहर लाल नेहरू अपनी स्टीरियो टाइप इमेज से हटकर नज़र आते हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के समय से 1970 तक फोटोग्राफी कर चुकी होमाई के काम की विविधता देखते ही बनती है। विश्व युद्ध के समय भारतीय सेना के जवानों और उस समय की महिलाओं की तस्वीरें आज के युवा को झकझोर देने वाली हैं। वे फोटो जर्नलिज़्म के सही मायने बताने के साथ खींचने के मक़सद पर ज़ोर देती हैं जो कि एक बड़ा मौज़ू है। इस अवसर पर युवाओं को उनसे से रूबरू होने का मौका भी मिला। अपने जीवन के सौ साल पूरे करने से तीन साल दूर व्यारावाला ने अपने ही अंदाज़ में सभी उत्सुक चेहरों के सवालों के जवाब बखूबी दिऐ। उम्र का तकाज़े को पीछे छोड़ उन्होंने ऐसी महफिल जमाई कि सब देखते ही रह गऐ। युवा फोटो जर्नलिस्ट वंदना ने कहा ‘होमाई के उस समय के चित्र देखकर वापस उसी वक्त में जाने का मन हो उठा। उस समय फोटो डेवेलप करने के तरीके तो चौंकाने वाले हैं। एक महिला फोटो जर्नलिस्ट के रूप में काम करना कितना मुश्किल था। उन्होंने बड़े जोशोखरोश से ऑटोग्राफ्स भी दिऐ। प्रदर्शनी मे उपस्थित सभी लोग उनके व्यक्तित्व से अत्यंत प्रभावित हुऐ।’
व्यारावाला की यहां उपस्थिति का श्रेय ए. जे. के किदवई मास कम्युनिकेशन एण्ड रिसर्च सेन्टर, जामिया मिल्लिया इस्लामिया की ही लेक्चरर सबीना गैडीहोक को जाता है जिन्होंने उनके कार्य पर बायोग्राफी भी लिखी। सबीना ने ही अपने समय की इस इकलौती महिला फोटो जर्नलिस्ट को एक बार फिर से फोटोग्राफी जगत में अपनी पहचान के लिए ला खड़ा किया था। उन्होंने होमाई व्यारावाला पर शोधकार्य कर उन पर किताब भी प्रस्तुत की है।

7 comments:

  1. बंटवारे का दर्द वो कड़ुआ सच है...जिसे स्वीकार करना ही है...यह भी सच हैं कि सत्ता हथियाने की जल्दी की कीमत देशवासियों को चुकानी पड़ी।आपका लेख बहुत अच्छा है....

    http://veenakesur.blogspot.com/

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  2. आपकी प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया..
    अब तो केवल यही उम्मीद की जा सकती है कि जल्द ही हम सभी इस पीड़ा से छुटकारा पा सकें और एक ठोस समाधान पेश कर सके जिसे सर्वसम्मति प्राप्त हो ।।

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  3. badhiya jankari ke liye thanks.

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  4. नमस्कार ! आपकी यह पोस्ट जनोक्ति.कॉम के स्तम्भ "ब्लॉग हलचल " में शामिल की गयी है | अपनी पोस्ट इस लिंक पर देखें http://www.janokti.com/category/ब्लॉग-हलचल/

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  5. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  6. इस सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  7. sundar vihag , sundar suman , manav tum sabse sundartam . yahi aata hai blog ke prati aapke rawaiye ko dekhkr

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