Saturday 30 October 2010

बेआवाज़ तालियों की गूँज...

सैय्यद शहाब अली


बेआवाज़ तालियों की गूँज में हैं गुम
ख्वाब अब आते नहीं, न ही आते तुम

प्यार की तबियत खराब कर गए
जफा की सुई दिल के ज़ालिम पार कर गए
ख्वाहिशे ग़मगीन सी रहती हैं यूँ गुमसुम
बेआवाज़ तालियों की गूँज में हैं गुम

नाहक वफ़ा के बदले ही शोक मिल गया
राह-ऐ-वफ़ा में चलते-चलते रोक क्यों गया ?
तेरे प्यार की सहलाहट को तरस रहे हैं हम
बेआवाज़ तालियों की गूँज में हैं गुम

काश तुम फितरती न यूँ सनम होते
खानाबदोश जिंदगी से दरगुज़र होते
पर इकबाले जुर्म कर भी लो तो मिट चुके हैं हम
बेआवाज़ तालियों की गूँज में हैं गुम

हुस्न का अंजाम न देखो तो अच्छा है
कभी-कभी ये गम  प्यार से भी अच्छा है
पर चख-चखकर ये मज़ा थक गए हैं हम
बेआवाज़ तालियों की गूँज में हैं गुम !!

2 comments:

  1. Replies
    1. "Husn ka anjaam na dekho toh acha hai
      Kabhi-kabhi ye gum pyaar se bhi acha hai"
      Bohot sundar likha hai.. Mazza aaya padh kar..

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