Saturday 30 October 2010

ख़ुशी की चुभन...

सैय्यद शहाब अली

इस ख़ुशी में भी चुभन सी है
आपके न होने की
कुछ खोने की

याद है पर फिर भी नहीं
ज़ख़्म का रंग देखो
यूं ही नहीं है
आदत ये रोने की
देखो न...
ख़ुशी में भी चुभन सी है
आपके न होने की
कुछ खोने की

बेज़ुबानी ठीक नहीं पर
कोई क्या करे
फिर भी
है क्यूं ये
शराफ़त चुप रहने की
देखो न...
ख़ुशी में भी चुभन सी है
आपके न होने की
कुछ खोने की

वो चुप नज़रे
जो यहीं थीं
कोई न मानें
पर मैंने सुनीं थीं
है अब भी
दबिश कुछ होने की
देखो न...
ख़ुशी में भी चुभन सी है
आपके न होने की
कुछ खोने की

एक बार देखना है
छूना है
कुछ पूछना है
लेकिन क्यूं नहीं है
तकदीर ये सोने की
देखो न...
ख़ुशी में भी चुभन सी है
आपके न होने की
कुछ खोने की

वक्त बुरा था
अब भी है
गीली सांस गले तक
आख़िर क्यूं नहीं
हिम्मत मरने की
देखो न...

ख़ुशी में भी चुभन सी है
आपके न होने की
कुछ खोने की

चल तो रहा है
सब कुछ
यूं ही
थक-थककर उजड़कर
हममें ही शायद
कुव्वत नहीं बढ़ने की
देखो न...
ख़ुशी में भी चुभन सी है
आपके न होने की
कुछ खोने की

कमी कितनी है यहां
दिखती नहीं
ख़ुशी बरसे भी तो
टिकती नहीं
रह-रहकर रुक-रुककर
यादों के जाले से
हिम्मत नहीं छूटने की
देखो न...
ख़ुशी में भी चुभन सी है
आपके न होने की
कुछ खोने की

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